शीतला माता की कथा
शीतला माता की कथा होली के सात दिन बाद बासोड़ा बनाया जाता है। होली के बाद के 7 दिन के बाद बनाया जाता है। इस बासौड़ा इस बार 13 मार्च सोमवार को मनाया जाएगा । इसलिए रविवार 12 मार्च को रात में खाना बनाकर रखते हैं और फिर सुबह पूजा जाता है। इसके पीछे की प्राचीन तथा है जो मैं नीचे दे रही हूं यह कथा बहुत पुरानी है। एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो आज देखु कि धरती पर मेरी पूजा कौन करता है, कौन मुझे मानता है। यही सोचकर शीतला माता धरती पर राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई और देखा कि इस गाँव में मेरा मंदिर भी नही है, ना मेरी पुजा है। माता शीतला गाँव कि गलियो में घूम रही थी, तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेका। वह उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी। शीतला माता गाँव में इधर उधर भाग भाग के चिल्लाने लगी अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा हे। कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गाँव में किसी ने शीतला माता कि मदद नही करी। वही अपने घर के बहार एक कुम्हारन (महिला) ...